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Who is Vaishnav and Bhajan Mahima


Who is Vaishnav-

वैष्णव कौन है ?
जो कभी भी भगवान की आशा न त्यागे और भगवान को छोड़कर किसी की आशा न रखे ।
भोग, वासना और भक्ति एक साथ नहीं रह सकते । जब तक संसार और उसकी वस्तुओं में रस या आनंद आ रहा है तब तक श्रीभगवत-प्रेम कहाँ ?


Bhajan Mahima -


रोगमुक्त होने के लिये प्रिय न होने पर भी औषधि लेनी होती है क्योंकि हमें विश्वास है कि बिना औषधि के रोग-मुक्त होना संभव नहीं है। औषधि कितनी ही कड़वी क्यों न हो, हम रोग-मुक्त होने तक छोड़ते नहीं है फ़लस्वरूप एक निश्चित समय के बाद औषधि का कड़वापन भी विशेष अनुभव में नहीं आता। हम भी रोगी ही हैं, भव-रोग से ग्रस्त और हमारी औषधि है भगवद-भजन। हमें अभ्यास नहीं है अत: बोझ लगता है पर निरन्तर अभ्यास और प्रभु-कृपा से क्या संभव नहीं है।
पहिले घरों में नल के नीचे सीमेन्ट का फ़र्श होता था और मुहल्लों में हैन्डपंप के। उस पक्के फ़र्श पर घड़ा रखकर जल भरते थे और देखा होगा कि मिट्टी का घड़ा, एक ही स्थान पर रखते-रखते उस स्थान पर एक गोल घेरा, उस पक्के सीमेन्ट में बना देता था। कहाँ तो मिट्टी और कहाँ पक्का सीमेन्ट ? बस नित्य-निरन्तर का अभ्यास और उसकी अगाध करूणा और प्रेम पर विश्वास। वह आयेंगे ही , प्रतीक्षा करना, अधीर न होना। पहिले जन्म-जन्मांतरों के जमे हुए मैल से तो मुक्ति पा लें। हम दर्पण के सामने खड़े होकर दर्पण को ही साफ़ करते रहते हैं, कभी यह नहीं विचारते कि संभव है हमारा चेहरा ही मलिन हो और पहिले उसे साफ़ कर लें।
स्मरण रखना कि पौधा जब छोटा होता है तो उसकी विशेष सार-संभाल करनी होती है कि कहीं उसे कोई पशु न चर जाये, नष्ट न कर दे, जल की नियमित व्यवस्था और विशेष सार-संभाल उसे पल्लवित होने में सहायक होती है और एक समय वह पौधा ऐसा हो जाता है कि उसकी ओर विशेष ध्यान न भी दो तो कोई हानि का अंदेशा नहीं होता।
भजन भी ऐसा ही है। भजन में लगते ही "व्यवहारिक समस्यायें" आती हैं। हमारे दोष, पूर्वजन्म के प्रारब्ध-दोष, सुविधा-असुविधा रूपी भाव हमें रोकते हैं अत: इस समय विशेष सार-संभाल की आवश्यकता है क्योंकि बहुत संभव है कि हमारा कोई दोष रूपी पशु इसे चर जाये। हमारा प्रारब्ध और विकार जानते हैं कि अगर यह पौधा फ़ल-फ़ूल गया तो उन्हें अपने "घर" को छोड़ना होगा और पुराने किरायेदास घर न छॊड़ने के लिये "सब-कुछ" करने को तैयार रहते हैं। लगन, प्रेम और प्रभु कृपा पर दृढ़ विश्वास ही सहायक हैं। सींचो इस भजनरूपी पौधे को इतना कि यह वट-वृक्ष बन जाये और प्रभु के दिये इस अमूल्य जीवन का प्रभु की शरण होकर पूर्ण आनँद लो।
जय जय श्री राधे !

(Shared by Radha Sharan Das ji)

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